सबसे पहले यह स्पष्ट करना है कि संस्कृत शब्द गो या गौ जो है उसका मतलब सिर्फ़ भारतवर्श में पाई जानेवाली गाय व साँढ़ की नसले हैं । वास्तव में इस पवित्र भूमि के गो दैवी कामधेनु के वंशज हैं । इस गो की ही सेवा महाराजजी के भक्ति के प्रयोग का एक विशेष लक्षण है ।
गो की इतनी विशेष स्थिति क्यों ?
प्रथमतः यह कहना चाहिए कि सारे समाज के लिए गो अत्यधिक गुणकारक हैं । दूध व दुग्ध उत्पादों के बिना हमारी ज़िंदगी सुचिंत्य नहीं होती । बहुतसे दुग्ध उत्पादों का प्रयोग चिकित्सा में भी किया जाता है । सब पशुओं व मनुश्यों के बीच में गो एक ही प्राणी है जिसका मल विशुद्ध होकर संपूर्ण रूप से सबको पवित्र कर देता है । गो-मूत्र का प्रभाव पवित्रकारक व रोगनाशक भी है, उदाहरण से वह पथरियों का विनाश करता है ।
गो विश्व की माता हैं
ज़्यादे बड़े दृष्टिकोण में ईश्वर ने मनुश्यों को धर्म सिखाने के लिए गो की सृष्टि की । जो विश्व का धारण व पालन पोषण करते है वह धर्म है । उसके बिना समाज गड़बड़ी, कोलाहल व पीढ़ा से दुःखी होता है । धर्म कर सकने के लिए मानव को कुछ उच्च गुण स्वीकार करने हैं । दो इतने गुणों का गो उत्तम दृष्टांत हैं – वह निरपराधी व उपकारी हैं । चूंकि उनकी मातृक प्रीति सबका पालन पोषण करके समाज को सुखी व शांत करती है, शास्त्र बताते हैं कि “मातरः सर्व-भूतानां गावः सर्व-सुख-प्रदाः”
गो भगवान के भी भगवान हैं
वैष्णव वृंद परम धर्म का ही पालन करते हैं अर्थात सब कुछ जो वे करते हैं वह कृष्ण की तृप्ति के लिए है । कृष्ण गोओं की आराधना करते हैं क्यंकि वे कृष्ण के समान रूप से व्यवहार करते हैं – वे सब प्राणियों के सहायक हैं और किसी भी व्यक्ति का अपराध नहीं करते हैं । कृष्ण उनकी इतनी आराधना करते रहते हैं कि वह उनकी पूजा भी करते हैं । इसका तात्पर्य यह है कि गो हमारे लिए और अधिक भी आराध्य हैं । वास्तव में जिस जगह में श्री कृष्ण रहते हैं वह गोओं की विद्यमानता से ही विशिष्ट है (गोकुल, गोवर्धन, गोपियाँ, गोप, गोविंद, गोपाल प्रभृति) । कृष्ण के जीवन के इस प्रधान पक्ष को न मानकर हम उनकी सेवा व प्रीति किस तरह से करेंगे ?
एकता व आनुकूल्य
यदि हम गोओं की सेवा करके उनके गुण प्राप्त करेंगे तो स्वतः हमारे हृदयों मे एकता होगी गुरुजी व श्रीकृष्ण के साथ, और हम उनके लिए व सब प्राणियों के लिए आनुकूल्य से व्यवहार करेंगे । इसका मतलब यह भी है कि अगर गोसेवा बड़े परिमाण में की जाएगी तो सारे समाज में ये गुण प्रबल होंगे ।
गो सब देवताओं का आवास हैं
परंतु जो जन कृष्ण-भक्त नहीं हैं उनको गोसेवा से फायदा भी मिल सकता है । चूंकि गो सब देवताओं का आवास हैं और लोग उन देवताओं की प्रार्थना करते हैं, एक देवता की आराध्ना से उतना लाभ नहीं मिलता जितना गो की आराध्ना से । शास्त्र में इसके बहुत प्रमाण हैं ।
श्री हरिदास निवास
शायद सारे जगत का श्री हरिदास निवास एक यह स्थान है जहाँ गोसेवा एकदम निस्वार्थ भाव से ही की जाती है । गो उच्चतम परिवार के सदस्य माने जाते हैं अतः उनका कोई शोषण नहीं होता । उनकी दूध बछ्ड़ों को दी जाती है, और यदि कुछ बाकी है तो उसको दुहा जाता है ताकि गो-माताएँ तृप्त होकर ख़राब नहीं हो । इस दूध को श्रीकृष्ण को अर्पित करके आश्रम के निवासियों को दिया जाता है ।
गोशालाएँ सुसज्जित होकर सब वाञ्छित सुख देते हैं । प्रतिदिन गोओं को पर्याप्त ताज़ा आहार खिलाया जाता है, लड्डू या गुड़ के साथ (ऋतु पर निर्भर) । गोशालाओं में जो कुछ दो सौ गो हैं उन में से 40 प्रतिशत साँढ हैं । भौतिक दृष्टि से उनसे बड़ा फ़ायदा नहीं होता लेकिन श्री हरिदास निवास में केवल उनका कल्याण ही देख जाता है । यहाँ सिर्फ़ विशुद्ध गोओं की रक्षा की जाती है अतः दूध इत्यादि लब्धि बढ़ाने के लिए कोई संकरण नहीं चलता है ।