१ सेवा करो नहीं काम ।
२ गो भगवान के ही भगवान हैं ।
३ शील सम्पन्न मानव ही विश्व को सुखी सम्वृद्ध एवं निर्भय बना सकता है ।
४ यदि कृष्ण एवं कृष्ण सम्बन्धी समस्त व्यक्ति के प्रति आनुकूल्य नहीं करता तो वह उत्तमा भक्ति नहीं होती है ।
५ गो को देव भाव से ही देखना अवश्य होता, पशु भाव से नहीं । इस प्रकार गुरु को मनुश्य बुद्धि से नहीं देखना है ।
६ जीवित रहने का फल - यथार्थ वस्तु को जानना होगा ।
७ चिकित्सा शास्त्र में निदान की आवश्यक्ता जिस प्रकार होती है उस प्रकार ही भाषा में व्याकरण की आवश्यक्ता है, काव्य में भी अलंकार-शास्त्र की आवश्यक्ता तदरूप ही है ।