गो व शास्त्र से ईश्वर प्रीति करते हैं क्योंकि वे उनकी ही तरह मानव जाति की सेवा करते रहते हैं । फलस्वरूप गोसेवा, शास्त्रसेवा व विग्रहसेवा मानव के कल्याण के लिए अत्यवश्यक हैं और उनको यदि हम आगामी वंशों के लिए सुरक्षित रखना चाहते हैं तो अवश्यक है कि हम सब लोग संयुक्त व निश्चयात्मक रूप से क्रिया करें ।
जो शास्त्र व गो की रक्षा करते हैं वे ईश्वर के लिए बहुत प्रिय हैं । इसको जानकर आपकी शायद इन कार्यों में भाग लेने की आकांक्षा होगी । आमतौर पर वित्तीय सहायता सबसे शीघ्र व प्रयोगात्मक माध्यम है । अगर आपके पास PayPal एकौंट है तो केवल Donate के बट्न पर क्लिक कीजिए -
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वर्तमानिक परियोजनाएँ
“दिन-चंद्रिका” (स्पेनी व अँग्रेज़ी में) और “गोमांस-भक्षण के निषेध”(स्पेनी में) का मुद्रण ...... ३५०० यूरो
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"गो में भक्ति रखनेवाले मानव जो जो चाहते हैं, पाते हैं । जो स्त्रियाँ गो के भक्त हैं, उनकी भी सब कामनाओं की पूर्ति होती है । जो पुत्र चाहते हैं, उनहें पुत्र प्राप्त होते हैं, जो कन्या चाहते हैं, उनहें कन्या प्राप्त होती है, जो धन चाहते हैं उनहें धन प्राप्त होता है, जो धर्म चाहते हैं, उनहें धर्म प्राप्त होता है, जो विद्या चाहते हैं उनहें विद्या प्राप्त होती है, जो सुख चाहते हैं, उनहें सुख प्राप्त होता है । हे भारत! गो के भक्तों के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।"
महाभारत, अनुशासन ८३.५०-५२
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