भगवत-प्रीति को उत्तम पुरुषार्थ रूप में स्थापन करने से श्री चैतन्यने मानव इतिहास के सबसे बड़ी क्रांति को बनाया । पूर्व काल में लोगोंने सुख की तलाश काम में, अर्थ में व धर्म में की और कुछ व्यक्तियोंने जीवन को दुःखमय मानकर सुख को मोक्ष में पाने की कोशिश की ।
परंतु इन उपायों से कोई भी नित्य व संपूर्ण आनंद को नहीं दे सकते क्योंकि उनमें जो प्रवृत्ति है वह स्वार्थ से प्रेरित होती है और भगवान के साथ वास्तविक जोड़ नहीं होता । फिर भी कृष्ण के प्रति जो प्रीति है वह हमको उनसे जोड़कर हमको दूसरे के लिए खोलती है और हमारे चरित्रों का अंतिम विकास करके हमको आदर्श मानव बनाती है ।
भौतिक प्रीति के विपरीत विशुद्ध प्रीति हृदय में जगाई नहीं जा सकती बल्कि जिस व्यक्ति के पास यह प्रीति है उससे ही मिल जाए । श्री चैतन्यदेवजीने भगवत-प्रीति को न केवल विशिष्ट पद पर दिया लेकिन उसको लाकर उसका प्रसार भी किया । पांच सौ साल के बाद यह प्रीति अभी भूमि में उपलब्ध है, कारण वह सिद्ध व्यक्तियों के प्रणाली के द्वारा सुरक्षित है । ऐसे व्यक्ति के पास आकर उनका पालन करके हमको इस प्रीति का निधान भी मिलेगा ।